कोरोना के बाद सामान्य हुई पढ़ाई में से 3.48 लाख बच्चे नहीं पहुंचे स्कूल
कोरोना के बाद सामान्य हुई पढ़ाई में से 3.48 लाख बच्चे नहीं पहुंचे स्कूल
– कोरोना के दौरान अपने गांव लौटे परिवारों ने बिगाड़ा स्कूलों का ‘गणित’
शिक्षा फोकस, दिल्ली। कोरोना के बाद अकादमिक वर्ष 2022-23 के लिए पढ़ाई 1 अप्रैल 2022 से शुरू हो चुकी है। इस बीच एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। स्कूल के नियमित रूप से खुलने के बावजूद दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 3 लाख से ज्यादा छात्र विद्यालय नहीं आ रहे हैं। यह संख्या सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कुल छात्रों का 18 फीसद है।
ये छात्र लगातार 7 दिन या फिर 30 वर्किंग दिनों में से लगातार 20 दिन अनुपस्थित रहे। सामान्य तौर पर इसकी मुख्य वजह बीमारी या फिर कोरोना काल के दौरान अपने पैतृक घरों को लौटना रहा।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1 अप्रैल से 20 अक्टूबर 2022 की अवधि के बीच कुल 3,48,344 छात्र लगातार अनुपस्थित रहे। इनमें से 11 से 16 वर्ष आयुवर्ग के छात्रों की तादाद सबसे ज्यादा है। इस एज ग्रुप के 71.6 फीसद छात्र स्कूल नहीं पहुंचे। 11 से 13 वर्ष आयुवर्ग के तकरीबन 19 फीसद (1,35,558) छात्र भी अनुपस्थित पाए गए हैं।
इसके अलावा 14 से 16 वर्ष आयुवर्ग के भी 16 प्रतिशत छात्र-छात्राएं स्कूल नहीं आए। रिकॉर्ड के अनुसार, 55 फीसद छात्र और 45 प्रतिशत छात्राएं स्कूल से नदारद रहीं। बता दें कि कोरोना काल के दौरान बड़ी तादाद में लोगों ने दिल्ली से अपने घरों की ओर पलायन किया था। साथ ही बड़ी संख्या में लोग बीमारी से भी ग्रस्त हुए थे।
बताया जाता है कि 30 सितंबर 2022 तक 7516 छात्र एक भी दिन के लिए स्कूल नहीं आए। उनके परिवारों से संपर्क साधने की कोशिश भी नाकाम रही। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, बाल अधिकार संरक्षण आयोग (दिल्ली)-DCPCR की ओर से यह डाटा तैयार किया गया है।
DCPCR ने एक अर्ली वॉर्निंग सिस्टम तैयार किया है, जिसके तहत क्लास से अनुपस्थित रहने वाले छात्रों और ड्रॉप आउट रेट को कम करने की कोशिश की जाती है।
कोरोना महामारी के बाद इस साल 1 अप्रैल से एकेडमिक सेशन 2022-23 की शुरुआत की गई। साथ ही सरकारी स्कूलों में अनिवार्य उपस्थिति के प्रावधान को भी लागू किया गया। 3.48 लाख अनुपस्थित छात्रों में से 73,513 छात्रों से DCPCR के अधिकारियों ने संपर्क साधा।
इनमें से 41 फीसद छात्रों के अभिभावकों ने बताया कि बीमारी की वजह से उनके बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। वहीं, 25 प्रतिशत छात्रों के अभिभावकों ने बताया कि वे अपने बच्चों को लेकर गांव आ गए हैं, जबकि 11 फीसद स्टूडेंट के माता-पिता का कहना था कि उन्हें मालूम ही नहीं है कि उनके बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं।